तीसरी मंजिल
तीसरी मंजिल (Play)
ये कहानी हैं कुछ दोस्तों की जो अपनी trip के लिए इस ख़ौफ़नाक हवेली में आते है । जो अपनी नादानी में हवेली की तीसरी मंजिल पर चले जाते है । आइये जानते है ,ऐसा क्या था उस तीसरी मजिल पर।
- धानगड़ की ये ठाकुरो की हवेली कृष्णराज के पूर्वजो की हवेली है । जब कृष्णराज के कॉलेज की छुट्टियाँ हुई तो वो अपने दोस्तों को लेकर trip पर अपनी हवेली पर आया । क्यों कि ये गांव बेहद खूबसूरत था।
- जब वो लोग गांव में आए तो एक बुज़ुर्ग ने उन्हे चेतावनी दी कि उस हवेली में जाकर न रहें। पर उन लोगो ने उनकी बात हसी में टाल दी और वहां से हवेली की ओर चलदीये। कृष्णराज के साथ उसके दोस्त ऋषभ , अंशिका, सिमरन और धीरू थे।
और वो लोग हवेली पहोच गये।
अंशिका-wooow such a beautiful house,
सिमरन -ya it’s too big yaar
कृष्णराज-हा ये मेरे परदादा जी ने बनवाई थी ।but पाप अपने बिज़निस की वजह से मुम्बई शिफ्ट होगये , और मेरे दादा , दादी यहीं रह गए । पर अब वो इस दुनिया मे नही हैं।
सिमरन, अंशिका-ओ अच्छा ।
अंशिका -yaar ऋषभ तुम क्या आते ही फ़ोटो क्लिक करने लगे।
ऋषभ- इतनी सुंदर हवेली है , पता नई फिर कब मौका मिले इसलिए पिक्स ले रहाहुँ।
धीरू-आ आ आ आ आ आ आ आ(जोर से चीखा)।
सभी भागे और धीरू से पूछा क्या हुआ ।
धीरू-हा हा हा हा हा(हस्ते हुए) में तो बस तुम लोगो को डरा रहा था।
सबलोग- क्या यार डरा दिए तुम ।
सिमरन-वेसे भी वो बाबा की बात से में पहले ही थोडा disturb हु।
सबलोग-हा हा हा (हस्ते हुए) ।
जैसे ही सब लोग पीछे घूमे , घबरा कर एक कदम पिछे हट गए। क्युकी सामने कोई खड़ा था
कृष्णराज-(लंम्बी सांस लेते हुए ) काका आप, दोस्तों ये ब्रिजू काका हैं। ये ही हवेली की देख रेख करते हैं।
ब्रिजु-बाबा आप लोग नहा ले मैं अभी आप लोगो के लिए कुछ बनाता हूँ।
कृष्णराज- जी काका।
और सब लोग अपने अपने कमरे में चले गए। जब तक सब fresh हुए , तब तक रात के 8 बज चुके थे।
काका- किशु बाबा खाना तैयार है। ( आवाज लगते हुए)
सब लोग खाने की टेबल पर आगये , और खाना खाने लगे तभी एक आवाज हवेली की तीसरी मन्ज़िल से आई ।जिसे सुन कर सब डर गए।
काका- (हकलाते हुए) अरे वो बगल वाले घर मे एक पागल औरत रहती हैं। शायद उसी की आवाज है।
अब सब लोग ख़ाना खत्म कर के अपने room में चलेगये।
रात के ठीक 2 बजे थे , घड़ी की टिक टिक आवाज हवेली के सन्नाटे में काफी तेज सुनाई दे रही थी। तभी लड़कियों के रूम का दरवाजा अपने आप खुला।
और आवाज आई (धिमेस्वर में) अंशिका , अंशिका, अंशिका। अंशिका की निंन्द टूटी और पीछे देखा तो कोई नई था । पर वो बाहर जाकर देखती है , की कोंन उसे आवाज दे रहा है। वो धीरे धीरे चलती हुई सीढ़ियों की और चली गयी उसे वो आवाज अभी भी सुनाई दे रही थी। जब वो सीढ़ियों के पास गई तो देखा आगे का रास्ता बंद है । वहा पूजा कर के धागे बंधे हुए थे। अंशिका उन धागों को तोड़ने ही वाली थी कि….
काका- रूको बिटिया।
आंशिका डर से पीछे घूम गयी ।और बोली काका आप …अपने तो मुझे डरा ही दिया।
काका- आप यहां क्या कर रही है, इतनी रात को।
अंशिका- वो मुझे किसी ने आवाज दी ….. इसलिए ।
काका-(अंशिका की बात काटते हुए) यहां कोई नई है, आप जाइये और सो जाइये।
अंशिका जाने लगी -(काका -रुको।) यहां ऐसे रात में नई घूमते । अब वापस ऐसे रात में मत घूमना।
अंशिका-जी काका । पर आप ऐसे क्यूं बोल रहे हैं।
काका- रात बोहत होगयी है, आप सो जाइये।(और काका वहां से चले गये)।
जब अंशिका room में गयी तो देखा सिमरन वहां नही है।
अंशिका-(अपने मन मे सोचते हुई)ये दीदी कहां गयी।
वो उनको बाहर देखने के लिए बाहर जाने को मुड़ी, और रुकगयीं उसकी आँखों मे डर उतर आया वो डरते डरते पीछे घूमी नज़रे ऊपर उठायींऔर ज़ोर से चीखी…..आआआआआआआ और बेहोश होगयी।
सब लोग भाग कर आए। क्या हुआ अंशिका बोलो देखा वो बेहोश है, और उठाकर उसे बेड पर लिटा दिया।
ऋषभ- काका पानी लाईये।
काका-जी लाया।
सब अंशिका के चारो तरफ खड़े थे, ऋषभ ने उसके मुंह पर पानी की छींटे मेरी । और वो घबरा कर उठकर बैठ गयी ।
सबलोग-डरो मत हम है यहां। क्या हुआ तुम बेहोश कैसे होगयी।
अंशिका-वो सिमरन दी(हकलाते हुए) सिमरन दी उप्पर छत पर चल रही थी , उनका चेहरा बहोत भयानक था।
सवलोग -ऐसे कैसे हो सकता है, ये तुम्हारा वहम है।
अंशिका-नही ये वेहम नही है, देखो सिमरन दी यहां नही है।
सिमरन- मैं यही हूँ, अंशिका। मैं तो bathroom में थी। (और अंशिका की ओर देख कर शैतानी मुस्कुराहट दिखाते हुए)
अंशिका के डर की वजह से धीरू ने उसी रूम में सोने का फैसला किया। सुबह हुई सब लोग टेबल पर बैठकर नाश्ता करते हैं, पर आंशिका के चेहरे पर अभी भी खोफ था। सब लोग ये देखर बाहर जाने का फैसला करते हैं ताकि अंशिका का mood fresh हो जाए। शाम को देर से वो लोग लौटते हैं और आकर हॉल में बैठ जाते हैं। पर सिमरन बिना कुछ बोले सीधा अपने रूम में चली जाती है।
काका -किशु बाबा आपलोगो का खाना लगा दूँ ?
कृष्णराज- जी काका । अंशिका सिमरन दी को बुला लाओ ।
अंशिका के तोते उड़ गए ये सुनकर , पर वो हिम्मत कर के रूम में गयी , उसने देखा दी वहां नही है। वो भाग कर नीचे आई। अरे वो सिमरन दी ऊपर नही है(घबराए हुए)।
सब लोग- क्या ?अभी तो वो ऊपर गयी थी ।
अंशिका- हा ….पर अब नही है।
सब लोग भागे और सिमरन दी सिमरन दी कर के अवाज लगाने लगे उहोने हवेली के हर कोने में देखा ……पर तीसरी मंजिल पर नही। जब वो लोग ढूंढते हुए नीचे आए तो ….
धीरू- ऋषभ, कृष्णा(डर और चोंकते हुए) , (ऊपर की ओर इशारा किया)।
जब सब ने ऊपरदेखा तो सब की आंखे फटी रह गयी।
सबलोग- (चिल्लाते हुए ) सिमरन दी
सिमरन के बाल बिखरे हुए उसके चेहरे पर गिरे हुए थे , और वो तीसरी मंजिल की relling पर चल रही थी देखते ही देखते वो ऊपर से कूद गई और उन सब के सामने खड़ी होगयी। उसे इस हालत में देख सब दुखी दे और डरे हुए भी , जब वो नीचे कूदी तो सब लोग चीख उठे।
पूरी हवेली उनकी डर की चखों से गूंज रही थी।सिमरन उनके सामने खड़ी कृष्णा को घूर रही थी, और तेजी से दौड़कर उसका गला दबाने आई, जब वो कृष्णा के गले से 1इंच दूर थी काका बीच मे आगये त्रिशूल लेकर और सिमरन उसे देख कर घबरा गई और ऊपर की तरफ भागी। सब लोग उसके पीछे भागे तो काका ने रोक लिया।
कृष्णराज-काका हमारी सिमरन दी को खतरा है , हमे उनको बचना हैं।
काका- चिंता मत करो छबिली उसको कोई नुकसान नही पोहचएगी, क्योंकि वो उस शरीर को छोड़ नही सकती,तब तक जब तक उसका बदला पूरा न हो।
धीरू- छबीली, बदला ? ये सब क्या है।
काका- छबीली हमारे गांव की जमीदार की बेटी थी वो और छोटे मालिक(कृष्णराज के पापा) बचपन के दोस्त थे जब छोटे मालिक शेहर पड़ने गए तो उनके पीछे से बड़े मालिक ने(कृष्णराज के दादा जी) उन दोनों की शादी पक्की कर दी थी, और छबीली भी छोटे मालिक को पसंद करती थी । वो ये खबर सुनकर बहोत खुश थी। उसने सुना कि छोटे मालिक अपनी पढ़ाई खतम कर के गांव वापस आ रहे हैं। तो वो उस दिन सुबह सुबह आकर पुरी हवेली को सजा दी। छोटे मालिक के पसन्द का खाना अपने हाथो से बनाई। पर जब मालिक आए तो वो हुआ जो आज तक हम भुगत रहे हैं।
ऋषभ- ऐसा क्या हुआ था उस दिन काका?
काका – उसदिन छोटे मालिक अकेले नही आए थे , उनके साथ उनकी पत्नी थी,(कृष्णराज की माँ) छोटे मालिक शेहर से शादी कर के आए थे। बड़े मालिक और छोटे मालिक में उसदिन बहूत झगड़ा हुआ, पर अंत मे उन्होंने छोटी मालकिन को अपना लिया।
ये सब छबीली देख कर बहोत गुस्सा होगयी और छोटे मालिक से बोली के वो ये शादी तोड़ दें। और उससे शादि करलें, मालिक ने कहा मैं अपनी पत्नि से बहोत प्यार करता हूं। मैं उसे नही छोड़ सकता। और दोनों में कहा सुनी होगयी।
दो दिन बाद छोटी मालकिन का मुँह दिखाई का अवसर था सब हवेली में उसकी तयारी में व्यस्त थे। जब छोटी मालकिन मुंहदिखाई के लिए अपने कमरे में तैयार हो रही थी तब छबीली उनके कमरे में चुपके से घुस गई। और मालकिंन को मारने की कोशिश की पर सही समय पर वहां छोटे मालिक आगये और छबीली को रोक लिया छबिली ने कहा जब ये होगी ही नही तो हम दोनों शादी कर सकते हैं। और चाकू लेकर उनको मारनेकेलिए आगे बढ़ी तो मालिक ने उसे धक्का दिया और न जाने कैसे वो चाकू उसके खुद के गले पर लागग्या और वो मर गयी।पर मरने से पहले बोल रही थी कि मै इस खानदान में किसी को नही छोडूंगी।
और कुछ दिन बाद हवेली में अजीबो ग़रीब चीज़े होने लगी। एक दिन छोटी मालकिन ने अपने कमरे में छबीली की आत्मा को देखा। उन्होंने ये बात मालिक को बताई।
तब मालिक ने उनकी नही सुनी और नज़र अंदाज़ कर दिया,उनको यकीन तब हुआ जब बड़े मालिक को उसने कमरे की छत से लटका कर मारदीया।फिर मालिक ने गांव के पुजारी को बुला कर उसे उसी कमरे में बन्द कर दिया। और पूरी तीसरी मन्ज़िल को अभिमंत्रित कर के बंद कर दिया, ताकि वो कभी बाहर न आसके।और मालिक और मालकिन यहां से चलेगये।
कृष्णराज- जब तीसरी मनाज़िल को बंद कर दिया तो वो बाहर कैसे आयी और सिमरन दी के शरीर में कैसे गयी?
अंशिका-शायद मुझे पता है, जब हमलोग आये थे तब fresh होने के लिए room में गये थे, तो bathroom पहले मैंने use किया और जब में बाहर आई तो मैने दी को ऊपर से आते देखा था। मेने उनसे पूछा भी की वो कहा से रही है, तो वो बोली कि बस हवेली देख रही थी। शायद उसी वक्त उन्होंने वो दरवाजा खोल दिया हो।
ऋषभ- अब कैसे दी को बचाये उस आत्मा से?
काका- हमको उसी पण्डित के पास जाना होगा जो पहले छविली की आत्मा को रोक सका था।
धीरू- पर वो कहा मिलेगा? हम अभी जाकर उन्हें लेकर आते हैं। चलो दोस्तों।
कृष्णराज- नही हम सब लोग नही जा सकते हम में से किसी को यहां रुकना होगा , सिमरन दी कि लिए। आंशिका तुम रुक जाओ , ठीक है।
अंशिका- नही मैं अकेले नही रुक सकती ।
ऋषभ- ठिक हैं, मैं तुम्हारे साथ रुकता हु।
ये कहानी सुनते हुए सुबह हो चुकी थी ,कृष्णा,धीरू और काका पण्डित को लेने गांव चले गए। कुछ समय बाद जब वो लोटे तो सब लोग मिल कर तीसरी मंजिल पर गये।जब वो लोग उस कमरे का दरवाजा खोलते हैं, तो सिमरन पलंग पर पीछे मुंह कर के बैठी थी, और कुछ खा रही थी ।
पंडित- सिमरन(नम्रता से नाम लेते हुए)
सिमरन ने पीछे देखा तो उसके पूरे मुंह पर खून लगा था , सामने जाकर देखा तो वो बल्ली को कहा रही थी। ये देख आंशिका की चीख निकल गयी , और छविली ज़ोर,ज़ोर से हसने लगी।
छबीली- पण्डित चला जा यहां से मैं इस परिवार को नष्ट कर दूंगी, मेरे बीच मे बाधा मत बन बेकार में मारा जाएगा।
पंडित- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम पूर्वारुकेम्व वंधनाथ मरतयोंमोशी अम्रताम ॐ ।। ( मन्त्र पड़ते हुए,)
मन्त्रो को सुनते ही छविली बेचैन होगयी और ज़ोर ज़ोर से इधर उधर चीखती हुई भागने लगी। सिमरन दी को चोट पोहचेने लगी ।
छविली- चले जाओ , चले जाओ वरना मैं इस लड़की को मार दूंगी ।
छबीली सिमरन को कभी कांच से मारती कभी उनका सर दीवार में मारती। कभी कमरे की छत पर चलने लगती कभी कुछ करती।
लेकिन पंडित जी निरंतर अपने मन्त्र पड़ते रहे और ऋषभ और धीरू को सिमरन को कसके पकडने को कहा । जब उन्होंने उसे पकडा तो उसने कभी उनको दीवार में मारा तो कभी हवा में उड़ा लिया।
पण्डित ने अपने मन्त्रो और धागों से छविली को सिमरन के शरीर से दूर कर के एक बोतल में बंद कर लिया।
पण्डित- (काका से) इस बोतल को किसी नदी या तलब में डालदो ताकि कोई भी इसे खोल ना सके।
काका- जी पुजारी जी।। अब सब लोग उस कमरे से बाहर आगये । और सिमरन को होश में लाकर , वहां से निकल गए।